________________
उ.वी.
१८॥
2000
शब्द, अनेक तरहका बंध, अपेक्षासे सूक्ष्म स्थूल, छह तरहका संस्थान (आकार) अंधकार छाया आतप ( धूप ) उद्योत आदि पुद्गलोंकी विभावपर्याय हैं । और स्वभाव पर्याय परमाणुओंमें ही हैं। शरीर वचन मन श्वासोच्छ्वास इंद्रियें ये भी पुद्गलके पर्याय हैं । ये पुद्गलपर्याय जीवोंको मरण जीवन सुख दुःख आदि अनेक उपकार पहुंचाते हैं । स्कंधमें ( परमाणुसमूहमें ) कायव्यवहार बहुतकी अपेक्षा है और | परमाणु में उपचारसे कारण होनेकी अपेक्षा कायपना कहते हैं ।
1
जो जीवपुद्गलको गमनमें सहाई हो वह धर्मद्रव्य है । वह धर्मद्रव्य अमूर्त निष्क्रिय नित्य है और मछलियोंको जलकी तरह सहाय करता है प्रेरक नहीं है । जो जीवपुद्गल की स्थितिमें पथिकों (रास्तागीरों) को छायाकी तरह सहायक हो वह अधर्म द्रव्य है । वह अधर्मद्रव्य नित्य है अमूर्त है और क्रियारहित हैं । आकाश द्रव्य लोक अलोकके भेद से दो तरहका है सब द्रव्योंको जगह देनेवाला है और मूर्तिरहित है । जितनी जगह में धर्म अधर्म काल पुद्गल जीव रहें उतने आकाशको लोकाकाश कहते हैं । उससे बाहर दूसरी द्रव्यसे रहित केवल आकाश है वह अलोकाकाश है । वह अलोकाकाश अनंत है नित्य है अमूर्त है क्रियारहित है और सर्वज्ञ कर देखा गया है।
जो द्रव्योंकी नवीन पुरानी पर्यायों ( हालतों ) का करानेवाला है समयादि
20are:
पु. भा.
अ. १६
॥११८॥