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रूब्सडकब्जान्डब्लकन्सन्सन्सन्टर
लाइस जीवके केवलज्ञानादि स्वभावगुण हैं मतिज्ञानादि विभावगुण हैं । नर नारक देवादि । पर्याय विभावपर्याय हैं और जीवके शरीर रहित शुद्ध प्रदेश स्वभावपर्याय हैं। ___पहले शरीरका नाश दूसरे शरीरकी उत्पत्ति और दोनों अवस्थाओंमें आत्मा । बोही होनेसे जीवके उत्पाद व्यय ध्रौव्य तीनों हैं । इत्यादि अनेक तरहके जीवतत्वको जिनेन्द्रदेव अनेक नयभेदोंसे दर्शन विशुद्धिके लिये गणधर देवको उपदेशते ( कहते ) हुए। अथानंतर वे जिनेंद्र भगवान् पुद्गल धर्म अधर्म आकाश काल ऐसे पांच भेदरूप अजीवतत्वका व्याख्यान करने लगे । रूप रस गंध स्पर्शवाले पुद्गल द्रव्य अनंत हैं । और वे पूरण गलन स्वभावसे सार्थक नामवाले हैं। सामान्य रीतिसे अणु स्कंधरूप
दो भेद पुद्गलके हैं उनमेंसे जो अविभागी है वह अणु है और स्कंधोंके वहुतसे भेद हैं । Mail अथवा सूक्ष्म सूक्ष्मादि भेदोंसे वे पुद्गल छह तरहके हैं। उनमेंसे एक परमाणुरूप तो ?
सूक्ष्म सुक्ष्म १ हैं वे नेत्रोंसे नहीं दीखते । आगे द्रव्यकर्मरूप पुद्गलस्कंध सूक्ष्म पुद्गल २हैं। शब्द स्पर्श रस गंध सुक्ष्म स्थूल पुद्गल ३ हैं। छाया चांदनी घाम वगैरः स्थूल सूक्ष्म ४ | हैं, जल अग्नि वगैरः अनेक स्थूल पुद्गल ५ हैं। पृथ्वी विमान पर्वत मकान आदि स्थूल स्थूल पुद्गल ६ हैं। ये छहों तरहके पुद्गल रूपी हैं । परमाणुमें स्पर्श आदि वीस निर्मल गुण हैं वे स्वभावगुण हैं । स्कंधमें विभावगुण हैं।
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