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लब्लमन्ड
जीवोंकी जातियां है । उन जीवोंके कुल कोटि हैं ऐसा श्री महावीर देवने गणधरोंको तथा सव समूहको कहा है।
चार गति पांच इंद्रियमार्गणा छह काय पंद्रहयोग स्त्रीवेद आदि तीन वेद हैं, अनंहातानुबंधी क्रोध आदि पच्चीस कपायें हैं, पांच सुज्ञान तीन कुज्ञान ऐसे आठ ज्ञान हैं शुभ
और अशुभरूप सात संयम हैं । चक्षुदर्शन आदि चार दर्शन हैं शुभ अशुभरूप छह ।। लेश्या हैं, भव्य अभव्यके भेदसे दो तरहके जीव हैं छह प्रकारका सम्यक्त्व है । संज्ञी असंज्ञी ऐसे दो तरह जीव है, आहारक अनाहारक जीव हैं-इसतरह चौदह मार्गण ( ढूंढने के रास्ते ) कहीं हैं। इन्हीं चौदह मार्गणाओंमें ज्ञानियोंको संसारी जीव दर्शन विशु दिके लिये तलाश करने चाहिये ।
मिथ्यात सासादन मिश्र अविरत देशसंयत प्रमत्तसंयत अप्रमत्त अध:करण अपूर्वकरण आनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसांपराय उपशांतकपाय क्षीणकपाय सयोगीजिन
अयोगिजिन-ऐसे चौदह गुणस्थान जिनेन्द्रदेवने विस्तारसे कहे हैं। जो भव्य निर्वाण IMST( मोक्ष ) को गये हैं जाते हैं और जायंगे वे सिर्फ इन्हीं गुणस्थानोंको चढकर गगे।
नाते हैं और जायँगे दूसरी कोई रीतिसे नहीं। क्योंकि ग्यारह अंगका अर्थ जाननेपर