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म. वी. 18/चौइंद्री पंचेंद्री-इसतरह जीवके नौ भेद जिनागममें कहे गये हैं। पृथ्वी जल अग्नि (तेज) पु. भा.
18/ वायु प्रत्येक वनस्पति साधारण वनस्पति दो इंद्री तेइंद्री चौइंद्री पंचेंद्री-ऐसे जीवोंके ११४ दस भेद हैं । सूक्ष्म और बादरके भेदसे स्थावरोंके दस भेद हैं और एक त्रस-इसतरह हा ग्यारह भेद जीवोंके बुद्धिमानोंको जानना चाहिये।
दस स्थावर विकलेंद्री और पंचेंद्री-ऐसे जीवोंके वारह भेद हैं । पृथ्वी जल अग्नि वायु ( हवा ) वनस्पति-ये पांच सूक्ष्म वादर भेदोंसे दस प्रकारके तो स्थावर तथा ? विकलेंद्री असंज्ञी पंचेंद्री संज्ञी (मनसहित ) पंचेंद्री-इस तरह तेरह भेद जीवोंके हैं। समनस्क अमनस्क (मनरहित) ये दो पंचेंद्रीं, दो इंद्री ते इंद्री चौइंद्री तथा वादर सूक्ष्म दो
भेदरूप एकेंद्री-ऐसे सात भेद हुए, ये सव पर्याप्त और अपर्याप्त इसतरह दो भेदोंसे गुणा मा किये जानेपर चौदह जीवसमास ( जीवोंके भेद ) हो जाते हैं।
इसी तरह अठानवै भेद वगैरः बहुतसे जीवोंकी जातियोंके भेद श्रीमहावीरस्वामीने गौतम आदि गणधरोंके प्रति कहे हैं। पृथ्वी जल तेज वायुकाय नित्यनिगोद ही इतरनिगोद ये दो साधारण वनस्पति-ये छहों हरएक सात २ लाख और दसलाख
प्रत्येक वनस्पति जाति, विकलेंद्री तीनकी छह लाख, पंचेंद्री तिर्यंच नारकी देवोंकी ॥११॥ मिलकर बारह लाखयोनि और मनुष्योंकी चौदह लाख जातियां-ऐसे चौरासी लाख