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म. वी.
१०९॥
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दूर होगया और शुभ मार्दव परिणाम प्रगट होता हुआ । उसके बाद अति शुद्ध परिणामोंसे मंडपकी महान विभूतिको देख अचंभे सहित हुआ वह गौतम विप्र दिव्य सभा में | प्रवेश करता हुआ। उस सभाके अंदर वह उत्तम द्विज गौतम सव ऋद्धियों तथा जीवसमूहोंकर वेढे हुए दिव्य सिंहासनपर विराजमान जगत् के स्वामीको देखता हुआ । उसके बाद परमभक्तिसे जगतगुरुको तीन प्रदक्षिणा देकर हाथजोड़ प्रभुके चरणकमलोंको मस्तक से नमस्कार कर सार्थक नामादिकोंसे अपनी सिद्धिके लिये वह गौतम विम स्तुति करने लगा । हे भगवन् ! तुम जगत्के नाथ हौ और उत्तम एक हजार आठ नामोंसे भूषित होनेपर भी नामकर्मके नाशक हो । सब अर्थोंका जाननेवाला बुद्धिमान् | एक ही नामसे प्रसन्नचित्त होकर तुमारी स्तुति करे वह शीघ्र ही आपके समान नामोंको तथा उनके फलोंको पासकता है ।
ऐसा समझकर हे देव तुमारे नामोंको चाहनेवाला मैं भक्तिपूर्वक एकसौ आठ सुंदर नामोंसे तुम्हारी स्तुति करता हूं । हे भगवन तुम धर्मराजा धर्मचक्री धर्मी धर्मक्रियामें अग्रणी धर्मतीर्थ के करनेवाले धर्मनेता धर्मपदके ईश्वर हो । धर्मकर्ता सुधर्माढ्य धर्मस्वामी सुधर्मवित् धर्माराध्य धर्मश धर्मड्य धर्मबांधव धर्मिज्येष्ठ अतिधर्मात्मा धर्म ॥१०९ ॥ भर्ता सुधर्मभाक् धर्मभागी सुधर्मज्ञ धर्मराज धर्मराज अतिधर्मधी महाधर्मी महादेव महानाद
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पु. भा.
अ. १५
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