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चौदहवां अधिकार ॥ १४ ॥
श्रीवीरं त्रिजगन्नाथं केवलज्ञानभास्करम् ।
अज्ञानध्वांतहंतारं वंदे विश्वार्थदर्शिनम् ॥ १॥
भावार्थ-तीन जगत्के स्वामी केवल ज्ञानसे सूर्यस्वरूप अज्ञानरूपी अंधकारको MIनाश करनेवाले सबपदार्थोंके दिखानेवाले ऐसे श्री महावीर स्वामीको मैं नमस्कार करता हूं।
अथानंतर महावीर प्रभुके केवल ज्ञान उत्पन्न होने के प्रभावसे स्वर्गमें अपने आप घंटा बजनेका मेघके समान शब्द होने लगा, देवहाथी कमलपुष्पोंको वखेरते हुए नांचने । लगे । कल्पवृक्ष पुष्पांजलिकी तरह फूलोंकी वर्षा करते हुए सव दिशायें धूलि आदिसे रहित निर्मल हो गई और आकाश भी वादलोंसे रहित निर्मल होगया । इंद्रोंके आसन एकदम कंपित होने लगे मानों श्रीकेवल ज्ञानके उत्सवमें इंद्रोंका अभिमान नहीं सह सकते। हा इंद्रोंके मुकुट अपने आप नमते हुए । इस तरह ये आश्चर्य स्वर्गमें अपने आपही केव
लज्ञानकी मुचना देनेके लिये होते हुए । इन चिन्होंसे वे इंद्र प्रभुके केवल ज्ञानका
कन्सन्कन्छन्डन्न्कन्सन्लन्छ