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वह भेपधारी इंद्र ऐसा वोला कि-हे विप्र यदि तू मेरे काव्यका व्याख्यान ठीक २ अच्छी तरह कर देगा तो मैं नियमसे तेरा चेला हो जाऊंगा, अगर नहीं कर सका तो फिर तू क्या करेगा। उसके बाद वह गौतम वोला, अरे बुड्ढे मेरे सत्य वचन तू सुन। यदि मैं अर्थ नहीं कर सकू तो मैं भी इन पांचसौ शिष्यों तथाः अपने दोनों भाइयों । सहित अभी जगत्मसिद्ध वेदजन्य मतको छोड़कर तेरे गुरुका चेला हो जाऊंगा। इसमें संशय नहीं समझना। । इस मेरी प्रतिज्ञामें यह नगरका स्वामी काश्यप ब्राह्मण और ये बैठे हुए सब जने गवाह हैं । ऐसा सुनकर वे सब लोक बोल उठे कि कोई समय दैवयोगसे मंदरमेरु तो चलायमान हो जावे परंतु इसके सच्चे वचन महावीर प्रभुकी तरह नहीं झूठे हो सकते । | इस प्रकार दोनोंका आपसमें वचनालाप हानेके वाद इंद्र मधुर वाणीसे यह काव्य वोला
त्रैकाल्यं द्रव्यपदं सकलगतिगणा सत्पदा नवैव विश्वं पंचास्तिकाया व्रतसमितिचिदः सप्ततत्त्वानि धर्माः। सिद्धर्मार्गः स्वरूपं विधिजनितफलं जीव पवायलेश्या एतान् यः श्रद्दधाति जिनवचनरतो मुक्तिगामी स भव्यः॥१॥ यह काव्य सुनकर वह गौतम अचंभे सहित हुआ उसके अर्थ जाननेको असमर्थ ||
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