________________
म. वी.
१०७॥
ऐसा विचार वह इंद्र ऐसा जानता हुआ कि इस नगर में गोतमकुलका भूपण उत्तम गौतम ब्राह्मण ही गणधर पदवीके योग्य है । वह द्विजोत्तम किस उपाय ( तरकीब ) से यहां आसकेगा ऐसी अत्यंत चिंता प्रसन्नचित्तवाला वह सौधर्मेंद्र करता हुआ । फिर वह मनमें कहता हुआ कि देखो अब मैंने यह उपाय लानेके लिये जानलिया कि विद्यासे अभिमानी उस विप्रंको कुछ गूढ अर्थवाले काव्यको शीघ्र ही ब्रह्मपुरमें जाकर पूछूंगा । उसको नहीं मालूम पड़नेसे अज्ञानताके वश वाद करनेके लिये यहां अपनेआप आवेगा । ऐसा हृदयमें विचार कर बुद्धिमान वह इंद्र बुड्ढे ब्राह्मणका भेष बनाकर लाठी हाथमें के उस गौतमविप्र के पास जाता हुआ । वह भेषधारी इंद्र विद्याके मदसे उद्धत गौतमको देखकर बोलता हुआ कि हे विप्रोत्तम इस जगह तुम ही बड़े विद्वान दीखते हो इसलिये मेरे एक काव्यका अर्थ विचारकर कहो । क्योंकि मेरा गुरु श्रीमहावीर मौन धारण किये हुए है इसलिये मेरे साथ वह नहीं बोलता इसी कारण मैं काव्यके अर्थका चाहनेवाला यहां आया हूं ।
पु. भा.
अ. १५
काव्यका अर्थ समझ लेनेसे यहां मेरी बहुत जीविका होजायगी । भव्य पुरुषोंका उपकार होगा और आपकी भी प्रसिद्धि होजाइगी । ऐसा सुनकर वह गौतम द्विज बोला १ ॥ १०७॥ हे बुड्ढे तेरे श्लोकका यदि जल्दी ठीक अर्थ कर दूं फिर तू क्या करेगा ? उसके बाद