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म. वी.
१०६॥
चरणसेवासे आज हमारा शरीर पवित्र हुआ । हे देव तुम्हारे गुणोंको वर्णन करनेसे | आज हमारी वाणी भी सफल हुई । हे नाथ आपके गुणोंका विचार करनेसे आज हमारा मन भी निर्मल हुआ । हे देव आपके अनंत गुणोंकी स्तुति करनेको गौतम आदि गणधर भी अच्छी तरह समर्थ नहीं है ऐसे गुणोंकी हम अल्पबुद्धि कैसे स्तुति कर सकते हैं ऐसा समझकर हे नाथ हमने आपकी स्तुति करनेमें अधिक परिश्रम नहीं किया । इसलिये हे देव तुमको नमस्कार है अनंतगुणवाले आपको नमस्कार है सबमें मुखिया तुमको नमस्कार है और सत्पुरुषोंके गुरु आपको नमस्कार है ।
पु.भा.
अ १५
परमात्मरूप तुमको नमस्कार है लोकोंमें उत्तम तुमको नमस्कार है केवलज्ञानके राज्यसे भूषित आपको नमस्कार होवे । अनंतदर्शन स्वरूप आपको नमस्कार है अनंतसुखरूप तुमको नमस्कार है अनंतवीर्यरूप और तीन जगत्के भव्यजीवोंके मित्र आपको नमस्कार है । लक्ष्मीसे बढे हुए आपको नमस्कार है सबको मंगल करनेवाले आपको नमस्कार है श्रेष्ठ बुद्धिवाले आपको नमस्कार है महान् योधा आपको नमस्कार है तीन जगत्के नाथ आपको नमस्कार है स्वामियोंके स्वामी आपको नमस्कार है अतिशयों ( चमत्कारों से पूर्ण आपको नमस्कार है । दिव्यदेह आपको नमस्कार है.। धर्मस्वरूप ॥१०६ | आपको नमस्कार है ।