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कोई दो मंजिलके हैं कोई तीन चार मंजिलके हैं और अटारियोंकर तथा छज्जोंकर शोभायमान हैं। वे मकान ऊंचे दैदीप्यमान शिखरोंसे अपने तेजमें लीन हुए ऐसे मालूम होते हैं मानों चांदनीकर बनाये गये हों । मकानोंके ऊपरके भागमें तमाशा देखनेकी अटारियां बनी हुई हैं वे शय्या आसन और ऊंची सीढ़ियों सहित हैं । उनमें गंधवाँसहित कल्पवासी व्यंतर ज्योतिपी विद्याधर भवनवासी किन्नरोंसहित प्रतिदिन । ॐ क्रीड़ा करते हैं । कोई देव जिनेंद्रके गीत गानेसे कोई वाजे बजानेसे और कोई
नाचना व धर्मादिकी वातोंसे जिन भगवान्की सेवा करते थे। हम बड़े रास्तेके मध्यभागमें नौ स्तूप खड़े हुए थे जो पारागमणियोंके बने हुए थे। है। उनमें अर्हत और सिद्धभगवानकी मतिमायें विराजमान थीं। उन स्तूपोंके वीचमें रत्नोंकी ही वंदनवार बंधी हुई थीं जिन्होंने आकाशको अनेक वर्णवाला कर दिया है। वे ऐसी मालूम है होती थीं कि मानों इंद्रधनुप ही हों । पूजनकी द्रव्यसे धुजा छत्र सत्र मंगलद्रव्योंसे वे 2 स्तूप धर्मकी मूर्तिके समान शोभायमान होते थे।
वहांपर भव्यजीव आकर उन प्रतिमाओंका प्रक्षाल पूजन कर फिर प्रदक्षिणा देके स्तुतिकर श्रेष्ठ धर्मको उपार्जन करते थे। उसके बाद भीतरकी तरफ़ कुछ चलकर ॥१०॥ आकाशके समान स्वच्छ स्फटिकका बना हुआ परकोटा था वह अपनी चांदनीसे दिशा
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