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रत्नके तीन पीठोंके ऊपर सिंहासन पर विराजमान जगतके स्वामी श्रीमहावीर धर्मराजाके समान मालूम होने लगे। इस प्रकार अमूल्य महान दिव्य आठ प्रातिहार्योंसे l
भूपित वे महावीर स्वामी सभामंडपमें अत्यंत शोभायमान होते हुए। श्रीमहावीर प्रभुकी ! KIपूर्व दिशाकी तरफसे लेकर सभाके पहले कोठेमें गणधर और मुनीश्वर मोक्षकी प्राप्तिके ||३|| लिये विराजमान हो रहे थे। दूसरे कोठेमें कल्पवासिनी इंद्राणी वगैरः देवियां, तीसरेमें सब अर्जिका और श्राविकायें, चौथेमें ज्योतिपी देवोंकी देवियां पांचवेमें व्यंतरोंकी देवियां छडेमें भवनवासियोंकी पद्मावती आदि देवियां सातवेंमें धरणेंद्र आदि सब भवनवासी देव, आठवेंमें इंद्रोंसहित व्यंतरदेव, नवमेंमें चंद्र सूर्य आदि इंद्रोंसहित ज्योतिषी देव, दशमें कल्पवासौदेव ग्यारवें कोठेमें विद्याधर आदि मनुष्य और वारवें कोठेमें सिंह हरिण आदि तिर्यंच वैठे हुए थे।
इस प्रकार वारह कोठोंमें बारह जीव समूह तीन जगत्के गुरुको वेढकर भक्तिसहित हाथ जोड़ते हुए पापल्पी अग्निकी दाहसे दुःखी भगवान्के वचनरूपी अमृतको पानेके लिये बैठे हुए थे । उन जीवसमूहोंसे वेढे हुए तीन जगत्के स्वामी श्रीमहावीर सव धर्मात्माआके मध्यमें अत्यंत सुंदर धर्ममूर्तिकी तरह विराजमान हो रहे थे।
अयानंतर देवीसहित वे इंद्र धर्मरसकी चाहवाले हाथोंको जोड़ते हुए जयजय ||