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तीन परकोटोंसे घिरा हुआ था उन कोटोंके प्रत्येकके चार २ दरवाजे थे । वह वृक्ष ऊपर भागमें तीन छत्रोंसे शोभायमान था और वजनेवाले घंटे सहित था ।
ध्वजा चमर मंगलद्रव्य और देवोंसे पूजित श्री जिनप्रतिमाओं से वह वृक्ष जंबूवृक्षके समान ऊँचा शोभता था । उस चैत्यदृक्षके मूलभाग में चारों दिशाओं में श्री जिने न्द्रदेवकी मूर्तियां (प्रतिमायें ) विराजमान थीं उनको सुरेंद्र अपने पुण्यके लिये महा पूजाद्रव्योंसे पूजते थे । इसी प्रकार वांकी तीन वनों में भी सप्तपर्ण आदिक रमणीक चैत्य वृक्ष थे वे देवोंकर पूजित छत्र और अईत प्रतिमादिकोंसे शोभायमान थे । माला वस्त्र मोर कमल हंस गरुड सिंह बैल हाथी चक्र - इन चिन्होंसे दस तरहकी धुजायें बहुत ऊँची ऐसी मालूम देती थीं मानों मोहनीयकमको जीत लेनेसे प्रभुके तीन जगतके ऐश्वर्यको एक जगह करनेके लिये तयार हुई हों ।
एक एक दिशामें प्रत्येक चिन्हवालीं एकसौ आठ धुजायें थीं वे ऐसीं मालूम होती थीं मानों आकाशरूपी समुद्रकी तरंगें ही हों । उन धुजाओं के वस्त्र हवासे झोके लेते। हुए ऐसे जान पड़ते थे मानों भगवान्की पूजा करनेके लिये जगतके लोकोंको बुला रहे ही हों । उनमेंसे माला के चिन्हवाली धुजाओं में रमणीक फूलोंकी मालायें लटक रहीं थीं और वस्त्र चिन्दवाली धुजाओं में महीन बस्त्र लटक रहे थे । इसी प्रकार मोर वगैर: की
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