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गोंके शब्दोंसे ज्ञानके महोत्सवको मानों गाती हुई। उस खाईके अंदरका पृथ्वीभाग हसव ऋतुओंके फूलों सहित वेलों तथा वृक्षोंसे ढंका हुआ था । वहां पर क्रीडा करनेके है। पर्वत देवियोंकी क्रीडा करनेके लिये पुष्प शय्यावाले रमणीक बने हुए थे।
जिस जगह चंद्रकांतमणिकी शीतल शिलायें लतामंडपमें रखी हुई थीं वे इंद्रोंकेश विश्राम करनेके लिये थीं। वहां पर्वतके ऊपर वन फलोंसहित अशोक आदि महान् वृक्षोसहित)
और भौंरोंके गूंजनेसे अति शोभायमान था। उसके बाद कुछ दूर चलकर दूसरा सोंनेका परकोटा था वह बहुत ऊंचा था उसके सब तरफ मोती जड़े थे वे ऐसे मालूम होते थे। मानों तारे ही चमक रहे हों । वह परकोटा कहीं मूंगाकी कांतिके समान कहीं नवीन वादलकी रंगत कहीं इंद्रगोपकीसी लाल रंगत कहीं नीलरत्नकी कांतिवाला और कहीं चित्रविचित्र रत्नोंकी किरणोंसे महान् इंद्र धनुपके समान अति शोभता हुआ।
वह परकोटा हाथी सिंह व्याघ्र मोर और मनुष्योंके स्त्रीपुरुपरूप जोड़ोंके तथा वे.. लोके चित्रोंसे सब तरफ भरा हुआ ऐसा मालूम होता था मानों हँस रहा हो । उस|||| नकोटके चारों दिशाओंमें चांदीके बने हुए चार दरवाजे थे और वे तीन मंजिले थे। वे|
दरवाजे अपने प्रकाशसे ऐसे मालूम पड़ते थे मानों सबकी शोभाको जीतकर हँस रहे हों। उन दरवाजोंके पद्मरागमणियोंके बने हुए आकाशको उल्लंघन करनेवाले ऊंचे शिखर