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म. वी. कठिन परीपहोंको तथा वनके सब उपद्रवोंको जीतते हुए । बुद्धिमान् वे स्वामी भावनास-2
शहित और अतीचाररहित पांच महाव्रतोंको महान् ज्ञानके लिये पालते हुए । वे प्रभु । 1८८॥
A/पांच समिति और तीन गुप्ति इस तरह आठ प्रवचन माताओंको प्रतिदिन पालते हुए, अ.
जो कि कर्मरूपी धूलिके नाश करनेवाली हैं। वे विवेकी स्वामी सव उत्तर गुणों के साथ सव मूलगुणोंको आलसरहित होके पालते हुए दोपोंको स्वममें भी नहीं आने देते थे। इत्यादि परम चारित्रसे शोभित वे देव महावीर पृथ्वी पर विहार करते हुए उर्जा नी।
नगरीके आतमुक्त नामके स्मशानमें आपहुंचे। all उस भयानक स्मशानमें वे महावीर देव मोक्षकी प्राप्तिके लिये कायसे ममता छोड़के
प्रतिमायोग धारण कर पर्वतके समान निश्चल होके ठहरते हुए। परमात्माके ध्यानमें लीन है। सुमेरुपर्वतकी चोटीके समान ऐसे श्रीमहावीर जिनेंद्रको देखकर वह पापी स्थाणु नामका अंतिम रुद्र (महादेव ) दुष्टपनेसे उनके धैर्यके सामर्थ्यकी परीक्षा करनेको उपसर्ग करनेकी बुद्धि करता हुआ, क्योंकि जिनेन्द्रके पूर्वकृत कुछ पापका उदय उसी समय आया था। वह पापी रुद्र मोटे पिशाचोंके अनेकरूप रखकर अपनी मंत्रविद्यासे जिनेन्द्रको ध्यानसे
चलायमान करनेका उद्यम करता हुआ । वह रौद्र रातके समय ललकारते हुए आंखें ।।॥ I/फाड़कर देखते हुए एकदम दांत फाडकर हंसते हुए अनेक लयोंसे और वाजोंसे नाचते ।