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उन्न्छन्डन्न्ल
अनुसार असंख्यात द्वीप समुद्रोंमें आप विहार करता था । दुःखोंसे रहित इंद्रियसुखरूपी ? हासमुद्रमें मन्न हुआ दो सागरकी आयु पाता हुआ और पसीना व धातुमलसे रहित था । हाइसप्रकार वह देव पूर्वं श्रेष्ठ चारित्र पालनेसे उपार्जन किये अनेक प्रकारके भोगोंको ।
भोगता हुआ आनंदमें बीते कालको नहीं जानता हुआ। ___अथानंतर धातकीखंड द्वीपके पूर्व विदेहमें मंगलकरनेवाला मंगलावती देश है, उसके मध्यमें विजया पर्वत है वह सौकोस ऊंचा है । उस पर्वतकी उत्तर श्रेणी में । कनकप्रभ नामका नगर है वह नगर सोनेके परकोटे गली तथा जिनालयोंसे बहुत ही शोभायमान है । उस नगरका स्वामी विद्याधरोंका राजा कनकपुंख था | और सुवर्णके समान रंगवाली कनकमाला नामकी उसकी रानी थी । उन दोनोंके || घर वह सिंहकेतु नामका देव स्वर्गसे चयकर सुवर्णकी कांतिके समान कनकोज्वल | नामका पुत्र हुआ। पुत्र जन्मकी खुशीमें इसके पिताने जैनमंदिरमें जाकर कल्याणके || हा करनेवाली पंच कल्याणकोंकी महान पूजा की। फिर दानादिसे बंधु वगैरः सज्जनोंको तथा शादीन दुःखियोंको संतुष्ट करके गाना नाचना बाजे आदिसे जन्मका उत्सव किया।
रूपवान वह वालक दौजके चंद्रमाके समान क्रमसे बढता हुआअपने योग्य दुग्धपान अन्नवस्त्रालंकारादिके सेवन करनेसे सबको प्रिय लगता हुआ। अनेक शास्त्रोंको पढके तथा समस्त
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