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है। वैरियोंके नाश करनेवाले, पंच इंद्रियां और मोहके जीतनेवाले, गर्भादि पंचकल्याणकोंके ? ६. भागी, स्वभावसे पवित्र, स्वर्ग मोक्षके देने वाले, अत्यंत महिमाको प्राप्त, विनाकारण स॥
बके हितू, मोक्षरूपी स्त्रीके भर्ता ( पति ), सब संसारको ज्ञानसे प्रकाश करनेवाले, तीन जगतके स्वामी, और सत्पुरुषोंके परम गुरु आपके लिये वारंवार नमस्कार है।
हे देव खुशीसे ऐसी आपकी स्तुतिकरके तीन जगतकी सव संपदा हम नहीं लेना चाहते हैं किंतु जगतको हितकारी मोक्षकी साधनेवाली ऐसी सब सामग्री हमें कृपाकरके। दो। क्योंकि इस संसारमें आपके समान दूसरा कोई महान दाता नहीं है इस प्रकार वे इंद्र इच्छित वस्तुकी प्रार्थना करके व्यवहारकी प्रसिद्धिकेलिये सार्थक और श्रेष्ठ प्रभुके दो नाम रखते हुए । एक तो कर्मरूपी वैरियोंके जीतनेसे महावीर नाम रखा, दूसरा गुणोंकी वृद्धि होनेसे 'वर्धमान' नाम रक्खा । इस प्रकार दो नाम रखकर अत्यंत महोत्सवके । साथ प्रभुको ऐरावत हाथीपर बैठाकर वह इंद्र तथा देव जय जय शब्द करते हुए उस हा कुंडलपुर महान नगरमें आये । उस समय सब नगर, आकाश तथा वनको घेरकर सव ६ सेना और चार जातिके देव देवियें ठहरते हुए । उसके बाद वह देवोंका स्वामी सौधर्म,
इंद्र कुछ देवोंको साथ लेकर आतिशोभासे राज मंदिरमें प्रवेश करता हुआ। वहांपर रम- णीक गृहके आंगनमें रत्नोंके सिंहासनपर गुणकांति आदिकसे तो वच्चा नहीं किंतु उमरकी,
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