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म. वी. दीर्घ आयु, पंचेंद्रियकी पूर्णता, निर्मल बुद्धि, मंद कपाय होना, मिथ्यात्वकी कमी,
विनयादि श्रेष्ठ गुण इन सबका उत्तरोत्तर मिलना कठिन है । उनसे भी धर्मके करनेवाली ७६॥ देव गुरु शास्त्ररूपी सामग्रीका मिलना कठिन है, जैसे मनुष्योंको कल्पवेलि । उससे
भी सम्यग्दर्शनकी शुद्धि ज्ञान चारित्र निर्दोप तप ये मिलने बहुत कठिन हैं।
___इत्यादि सब सामग्रीको पाकर जो बुद्धिमान मोहको नाश कर मोक्षकी सिद्धि 5 करते हैं उन्हीं महान् पुरुषोंने बोधि ( भेदज्ञान ) को सफल किया । उस भेदविज्ञानको
पाकर भी मोक्षकी सिद्धिमें जो प्रमाद करते हैं वे मानों जिहाजको छोकर संसारसमुद्रमें डूबते हैं। ऐसा समझकर विचारवान् पुरुपोंको मोक्षके साधनमें तथा समाधिमरणके ई समयमें महान् यत्न करना चाहिये।
धर्मानुपेक्षा-जो संसार समुद्रमें गिरते हुए जीवोंको पकड़कर अहंतादिपदमें ? है अथवा मोक्षस्थानमें रक्खे वही उत्तम धर्म है । उस धर्मके उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, ४ सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन ब्रह्मचर्य ये दश लक्षण (चिन्ह ) कहे गये १ हैं । धर्मके चाहनेवालोंको ये धर्मके बीज पालने चाहिये । क्योंकि इन्हींसे मोक्षका
देनेवाला, खोटे कर्म और दुःखोंका नाशक तथा सब सुखोंका करनेवाला महान धर्म उत्पन्न होता है । इसी प्रकार रत्नत्रयके पालनेसे मूल गुण उत्तर गुणोंके धारण करनेसे
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