________________
जलसम्ब
र
देखो बड़े. अचंभेकी बात है कि यह जिनराज कुमारअवस्थामें ही कामरूपी वैरीको IS|मारकर तपोवनको जा रहा है। IIII ऐसा सुनकर दूसरे लोग भी ऐसा कहने लगे कि हे भाइयो मोह इंद्रिय काम
देवरूपी वैरियोंको मारनेमें यह प्रभु ही समर्थ है दूसरा कोई नहीं हो सकता । उसके। वाद कोई सूक्ष्म विचारवाले ऐसा बोले कि यह सव वैराग्यका ही महात्म है जो कि अंतरंग शत्रुओंका नाशक है । जिस वैराग्यके प्रभावसे स्वर्गके भोग और तीन जगतकी है संपदाएं पंचेंद्रियरूपी चोरोंके मारनेके लिये छोड़ दी जाती हैं । क्योंकि वैरागी ही चक्रवर्तीकी संपदाएं तृणके समान छोड़ सकता है परंतु रागी पुरुष दरिद्र अवस्थासे । दुःखी होनेपर फुसकी झोपड़ी भी नहीं छोड़ सकता।
ऐसा सुनकर कोई ऐसा कहने लगे कि देखो यह कहावत सच है कि वैराग्यके। विना मन निस्पृह नहीं हो सकता । इत्यादि वार्तालापोंसे कोई तो स्तुति करते हुए कोई पुरवासी नमस्कार करते हुए और तमाशा देखने लगे। इस प्रकार वह तीन जगतका स्वामी अनेक प्रकारके वचनालापासे प्रशंसा किया गया नगरके किनारे आ. अपहुंचा । अथानंतर वह जिनमाता अपने पुत्र के घरसे निकलनेपर मनमें अत्यंत शोककर ११ घबराई हुई पुत्रके वियोगरूपी अभिसे तपी हुई लिके समान मुरझागई । और दु:खित
--ECE