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कन्स्म्रु
म. वी./ चंदनके घिसे हुए जलसे जिसपर छींटे दिये गये हैं इंद्राणीके हाथसे रत्नोंके चूर्णसे पु. भा.
६ सांतियां बनाये गये हैं धुजा और मालाओंसे जिसका कपड़ेका मंडप शोभायमान है|
धूपका धुआं जिसके चारों तरफ है जिसके निकट मंगल द्रव्य रक्खे हुए हैं। | वे महावीर प्रभु भी शरीरादिसे इच्छा रहित वैरागी और मोक्षके साधनेमें इच्छावाले 3. हुए मनुष्योंका कोलाहल ( शोर ) शांत होनेपर उस शिलापर उत्तरको मुखकर बैठे // हुए शत्रु मित्रादि सब जगहपर उत्तम समान भावको चितवन करते हुए। वे महावीर ४) स्वामी क्षेत्रादि दश चेतन अचेतनरूप बाह्य परिग्रहोंको, मिथ्यात्व आदि चौदह अंतरंग १ परिग्रहोंको तथा कपड़े आभूषण माला आदिको छोड़ते हुए । और मनवचनकायसे है। है शुद्ध हुए शरीरादिमें निस्पृह और आत्मसुखमें इच्छावाले होते हुए। - al उसके वाद सिद्धोंको नमस्कार कर पल्यंकासन लगाके मोहकी फांसीके समान है।
वालोंको पांच मुष्टियोंसे लोंच करते (उखाड़ते) हुए । वे महावीर जिनेश्वर मन वचन का६। यसे सब पापक्रियाओंसे निवृत्त होकर अहाईस मूलगुणोंको पालते हुए । आताप६नादियोगसे उत्पन्न श्रेष्ठ उत्तर गुणोंको तथा महाव्रत समिति गुप्तिको धारण करते हुए | वे महावीर प्रभु सबमें समताको प्राप्त होकर सव दोपों रहित सामायिक संयमको स्वीकार S८२॥ ४ करते हुए । जो संयम गुणोंकी खानि और सबमें उत्तम है।
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