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समय उस ध्यानसे उत्तम चौथा मनःपर्ययज्ञान उस विभूके प्रगट हुआ जो कि निश्चयसे केवलज्ञान होनेका सूचक है । इस प्रकार विकाररहित हुआ वह महावीर प्रभु मनुष्य देवगतियोंमें होनेवाली राज्यभोग वगैरः संपदाको बालअवस्थामें ही तृणके समान छोड़ शीघ्र ही दीक्षाको धारण करता हुआ। ऐसे अनुपम गुणधारी श्रीवीरनाथको मैं स्तुति वा नमस्कार करता हूं। .
इस प्रकार श्री सकलकीर्ति देव विरचित महावीर पुराणमें भगवानके दीक्षा
कल्याणको कहनेवाला बारवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ १२ ॥