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हे ईश ! सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्ररूप रत्नत्रयके अमूल्य भूपणोंसे भूपित और अचेतन भूषणोंरहित तुमको नमस्कार है । सब वस्त्रों रहित दिशारूपी वस्त्रको धारणा करनेवाले महान् ईश्वरपनाको साधनेके लिये उद्यमी ऐसे आपको नमस्कार है । सब परिग्रहसे रहित गुणसंपदासे युक्त मुक्तिको महान् प्यारे ऐसे हे जिनेश्वर तुमको नमस्कार है । हे नाथ ! अतींद्रिय सुखमें मन लगानेवाले वैरागी उपवास करनेवाले परंतु शुक्लध्यानरूपी अमृतका भोजन करनेवाले ऐसे आपको नमस्कार है।
हे देव दीक्षित चार ज्ञानचक्षुके धारण करनेवाले स्वयंबुद्ध तीर्थेश वालब्रह्मचारी आपको नमस्कार है । कर्मरूपी वैरीकी संतानको नाश करनेवाले गुणोंके समुद्र और
उत्तम क्षमा आदि शुभलक्षणोंवाले आपको नमस्कार है । हे देव जगत्की आशाको पूरण हकरनेवाले ऐसे आपके स्तवन करनसे जगत्की संपदा हम नहीं लेना चाहते हैं किंतु है बालअवस्थामें तपदीक्षा स्वीकार करनेवाली ऐसी आपकीसी शक्ति हमको भी मुक्तिके | लिये मिलै । इस प्रकार देवोंके इंद्र उस महावीरप्रभुको पूजकर और नमस्कार कर स्तुति । नमस्कार पूजा आदिसे अनेक प्रकारका पुण्य कमाते हुए। ____ अथानंतर वह महावीर प्रभु निश्चल अंग हुआ कर्मरूपी शत्रुओंका नाश करने- वाले योगको रोकनेरूप ध्यान रखके पत्थरकी मूर्तिके समान बैठता हुआ। उसी
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