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पहले वे सब इन्द्र मोक्षके स्वामी उन महावीर प्रभुको सिंहासनपर बैठाकर महान् उत्सवके साथ क्षीरसमुद्रके जलसे भरेहुए बहुत बड़े सोनेके घड़ोंसे गाना नृत्य बाजोंके साथ जयजय शब्दकरते स्नान कराते हुए। फिर वे इंद्र तीन जगत्के भूषण उस प्रभुको दिव्य कपड़े । आभूषण और सुगंधित माला आदि द्रव्योंसे सजाते हुए । तब वे तीर्थंकर प्रभु, अपनी र मोहवाली माता चतुर पिता बंधुओंको बड़े कष्टसे (कठिनाईसे) मीठे वचनोंसे सैकड़ों उपदेशोंसे? तथा वैराग्यके करनेवाले वाक्योंसे अपनी दीक्षाके लिये समझाते हुए। उसके बाद संयमल, शक्षीके सुखमें उद्यमी वे महावीर प्रभु खुशीके साथ लक्ष्मी और बंधुओंको छोड़कर दिव्य , दैदीप्यमान इंद्रकर रचीहुई चंद्रप्रभा नामकी पालकीमें इंद्रके हाथके सहारेसे बैठकर दीक्षा, के लिये प्रस्थान करते हुए । उस समय वे जगतके स्वामी सव आभूषणोंसे शोभित
देवोंसे घिरे हुए तपरूपी लक्ष्मीके उत्तमवरके समान मालूम होने लगे। IMO पहले उस पालकीको भूमिगोचरी सात पैंड लेजाते हुए पीछे विद्याधर आकाशमें
सात पेंड ले जाते हुए । उसके बाद धर्मानुरागी सब देव अपने कंधेपर रखकर उस ! प्रभुको आकाशमार्गसे ले जाते हुए । देखो इस प्रभुकी महिमाका कहांतक वर्णन करें कि जिसकी पालकीके लेजानेवाले इंद्रादिक हैं। उस समय देव हर्पित हुए चारों तरफसे फूलोंकी है वर्षा करते हुए और वायुकुमार देव गंगाके कणोंको छिटकानेवाली वायुको चलाते हुए।
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