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हे स्वामी मोहरूपी कीचडमें फँसे हुए भव्यजीवोंको तुम ही निश्वयसे हाथका सहारा दोगे क्योंकि आप ही धर्मतीर्थ के प्रवर्तानेवाले हो । तुम्हारे वचनरूपी मेघसे वैराग्यरूपी अद्भुत वज्रको पाकर बुद्धिमान् भव्यजीव बहुत ऊंचे मोहरूपी पहाड़के सैकड़ों टुकड़े चूर्णरूप करदेंगे । आपके तत्वोपदेशसे पापी जीव तो पापको और कामीजन कामशत्रुको जल्दी ही नाश करेंगे, इसमें संदेह नहीं है । हे नाथ कोई तुमारे भक्त आपके चरणकमलों के सेवन से दर्शनविशुद्धि आदि सोलह भावनाओंको ग्रहण करके आपके समान हो जायेंगे हे प्रभो संसारसे द्वेष करनेवाले वैराग्यरूपी तलवारको रक्खे हुए आपको देखकर मोह और इंद्रियरूपी शत्रु अपने मरनेके भय से बहुत कांप रहे हैं क्योंकि हे उत्तम सुभट तुम दुर्जय परीषहरूपी योधाओं को लीलामात्रमें जीतनेको समर्थ हौ । इसलिये हे धीर मोहइंद्रियरूपी वैरियोंके जीतनेमें तथा सव भव्योंके उपकारके लिये चारों घातिया कर्मोंरूपी वैरियोंके नाशमें उद्यम करो । क्योंकि अब यह उत्तम काल तपस्या करानेके लिये, कर्मोके नाशके लिये और भव्योंको मोक्ष ले जानेके लिये आपके सामने आया हुआ है ।
इसलिये हे स्वामी आपको नमस्कार है, गुणोंके समुद्र आपको नमस्कार हैं और हे जगत् के हित करनेवाले मोक्षरूपी सुंदर स्त्रीकी प्राप्ति के लिये उद्योगी आपको नमस्कार
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