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बारवां अधिकार ॥ १२ ॥
वीरं वीराग्रिमं नौमि महासंवेगभूषितम् ।।
मुक्तिकांतासुखासक्तं विरक्त कामजे सुखे ॥१॥ भावार्थ--बलवानोंमें मुखिया, महान् वैराग्यसे शोभायमान, मोक्षके सुखमें लीन हा और कामंजनित सुखसे विरक्त ऐसे महावीर प्रभुको मैं नमस्कार करता हूं। II अथानंतर महावीर प्रभुके वैराग्य होनेके वाद सारस्वत आदित्य वन्हि अरुण गर्दतोय हातुषित अन्यावाध और अरिष्ट ये आठ तरहके लौकांतिक देव अपने अवधिज्ञानसे उस हामभुके तप कल्याणकका महोत्सव समय जानकर स्वर्गसे पृथ्वीपर उतर जगत्के गुरु ।
महावीर प्रभुके निकट आते हुए । कैसे हैं वे देव ? पहले जन्ममें सब द्वादशांग श्रुतका ? ||अभ्यास किया है, वैराग्य भावनाओंको चितवन किया है चौदह पूर्व श्रुतके जाननेवाले, स्वभावसे वाल ब्रह्मचारी तप कल्याणका उत्सव करनेवाले निर्मल चित्तवाले एक भवन ( जन्म ) मनुष्यका रखकर मोक्ष जानेवाले देवोंसे वंदनीक देवोंमें ऋपि ( यति ) हैं । ।
बुद्धिमान् वे लोकांतिक देव कर्मरूपी वैरियोंके नाश करनेमें उद्यमी ऐसे महावीर
जान्छन्