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और तपस्या से मोक्षसुखका देनेवाला यतियोंका धर्म पाला जाता है । तीन लोक में रहनेवाली उत्तम संपदाएं दुर्लभ होनेपर भी धर्मके प्रभावसे अपने आप प्रेमसे धर्मात्मा - ओंके पास आजातीं हैं जैसे अपनी पतिव्रता स्त्री । धर्मरूप मंत्रसे खींचीं गई मुक्तिरूपी स्त्री धर्मात्माओं को निश्चयसे आपही आकर आलिंगन देती ( चिपट जाती) है तो देवांगनाओंकी बात क्या है १ ।
लोक दुष्प्राप्य महामूल्य- जो कुछ सुखके साधन हैं वे सब धर्मके प्रसादसे पुरुषोंको जगह जगह मिल सकते हैं । धर्म ही मित्र पिता माता साथ चलनेवाला हितका करनेवाला है । धर्म हो कल्पवृक्ष, चिंतामणि और सब रत्नोंका खजाना है । वेही पुरुष इस लोकमें धन्य हैं जो प्रमादको छोड़ हमेशा धर्मको पालते हैं और वेही पुरुष सज्जनोंसे पूजा किये जाते हैं । जो मूर्ख धर्मके विना दिनोंको विता देते हैं वे घरके वोझेसे सींग रहित हुए बैल हैं ऐसा बुद्धिमानोंने कहा है । ऐसा जानकर बुद्धिमानोंको धर्मके विना एक समय भी वृथा नहीं जाने देना चाहिये; क्योंकि इस संसार में आयुका भरोसा नहीं है । इस प्रकार बुद्धिमानों को हमेशा ऐसी भावनाओंको चित्तमें धारण करना चाहिये । जो भावनायें विकार रहित हैं तीव्र वैराग्यका कारण हैं सवगुणों का खजाना हैं पापरागादिसे रहित हैं और जैनमुनि जिन भावनाओंकी सेवा करते रहते हैं । ये बारह भाव -