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भोगते हैं । वह महान इंद्रियसुख देवांगनाओंके साथ हमेशा अप्सराओंका नाच देखनसे अपनी इच्छानुसार क्रीडा करनेसे गाना वगैरः सुननेसे भोगा जाता है। उस स्वर्गके ऊपर लोकके अग्रभागमें रत्नमयी मोक्षशिला है वह मनुष्य क्षेत्रके समान पैंतालीस लाख योजनकी है और बारह योजन मोटी है। | उस शिलाके ऊपर सिद्ध भगवान् विराजमान हैं। वे सिद्ध भगवान् अनंत सुखमें | लीन हैं, अनंत हैं, जिनका ज्ञान ही शरीर है दूसरा पुद्गल शरीर नहीं-ऐसे सिद्धोंको । उनकी गति पानेके लिये मैं नमस्कार करता हूं। इस प्रकार इंद्रिय सुख दुःख वाले तीन लोकका स्वरूप जानकर सबसे रागको छोड़के लोकके अग्रभागमें जो मोक्षस्थान है उसको हे सुख चाहनेवाले भन्यो ! तुम रत्नत्रय तपस्यासे शीघ्र ही मन वचन कायके आयोगोंद्वारा सेवन करो । जो मोक्षस्थान अनंत गुण और अनंत सुखसे परिपूर्ण : ( भरा हुआ) है।
बोधि दुर्लभ भावना-चार गतियोंमें हमेशा भटकते हुए और कर्म बंध करते हुए जीवोंको वोधि ( भेदविज्ञान ) का होना बहुत दुर्लभ ( कठिन ) है जैसे कि, हादरिद्रियोंको खजाना । उन चार गतियोंमेंसे पहले तो मनुष्य गतिका पाना ही कठिन
है जैसे कि समुद्रमेंसे चिंतामाण रत्नका मिलना । उसमें भी आर्यक्षेत्र, उत्तमकुल, !