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लोकभावना - जहां छह द्रव्य दखिनेमें आवें वह लोक है । वह लोक अधो मध्य ऊर्ध्व भागों से तीन भेदरूप, अकृत्रिम है यानी किसीका बनाया हुआ नहीं है और | अविनाशी है । इस लोकके नीचले भाग में सातरार्जू प्रमाण नरककी सात पृथ्वी हैं वे सब अशुभ रूप दुःखों के देनेवाली हैं । उन पृथिवियोंके सब एक कम पचास ४९ पटल (खन ) हैं और चौरासी लाख रहनेके विले हैं ।
उन नरकोंके बिलोंमें जो पहले जन्ममें दुष्ट, महापापके करनेवाले, खोटे कामों में लीन, निंदनीक जुआ आदि सात विसनोंके सेवनेवाले महान् मिथ्याती हैं ऐसे जीव नरकगतिको प्राप्त हुए जन्म लेते हैं, वहांपर वे नारकी आपसमें वचनसे न कहा जाय ऐसा दुःख पाते हैं । छेदना अनेक तरहके भयंकर स्वरूप बनाना मारना कुचलना शूली आदिपर चढ़ाना तथा बहुत भूख प्यास आदि परीसहों का सहना इत्यादि महान दुःखों को पाते हैं । यह अधोलोकका कथन हुआ ।
मध्यलोकमें जंबूद्वीपको आदि लेकर द्वीप और लवण समुद्रको आदि लेकर समुद्र असंख्यात हैं। पांच सुमेरु हैं और तीस कुलपर्वत हैं वीस गजदंत हैं एकसौ सत्तर विजयार्ध हैं अस्सी वक्षार पर्वत हैं चार इष्वाकार पर्वत हैं दस कुरुवृक्ष मानुपोत्तर पर्व - १ राजूका प्रमाण बहुत है ।
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