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गुण अपनेआप ही प्रगट होजाते हैं। जो मुनि तपस्याका कष्ट सहते हुए भी पापपु.भा. . कर्मोंका ही संवर करते हैं शुभकर्मोंका नहीं उन योगियोंको मोक्ष तथा निर्मल गुण है कैसे प्राप्त होसकते हैं । इसतरह संवरके गुणोंको जानकर हे मोक्षाभिलापी हो तुम हमेशा
अ.११ 8) सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्र और श्रेष्ठयोगोंसे सब तरह कर्मोंका संवर करो।
. निर्जरानुप्रेक्षा-जो पूर्व किये काँका तपस्यासे क्षय करना ऐसी अविपाक निर्जरा मोक्षके करनेवाली योगियोंके ही होती है। जो सब जीवोंके स्वभावसे ही 8) कर्मके उदय आनेपर निर्जरा होती है ऐसी सविपाक निर्जरा त्यागनी चाहिये जो कि 18 नवीन कोंको करनेवाली है।
जैसे जैसे तप और योगोंसे अपने कर्मोंकी निर्जरा की जाती है वैसे २ मोक्ष रूपी । लक्ष्मी मुनीश्वरोंके निकट आती जाती है । जव सब कर्मोंकी निर्जरा पूरी हो जाती है।
उसी समय योगियोंके मोक्षलक्ष्मीका मेल हो जाता है। ____ वह निर्जरा सब सुखोंकी खानि है मोक्ष रूपी स्त्रीको देनेवाली है, अनंतगुणोंको ६ भी देनेवाली है, जिसकी तीर्थकर व गणधर सेवा करते हैं, सब दुःखोंसे अलग है, ४ पुरुषोंको माताके समान हित करने वाली है, तीन लोक कर पूज्य है और संसारकी
नाशक है । इस तरह निर्जराके गुणोंको जानकर संसारसे डरे हुए भव्योंको तपस्यासे ॥४॥ कठिन परीसहोंको सहन फरके सब यत्नोंसे मोक्षप्राप्तिके लिये लिये निर्जरा करनी चाहिये।