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म. वी. लेकर चोटीतक स्वभावसे थी उसको कौन बुद्धिमान् वर्णन कर सकता है। तीन जग-8/ पु. भा.
K तमें रहनेवाले दिव्य प्रकाशमान पवित्र और सुगंधित परमाणुओंसे ब्रह्मा व कर्मने उस
। प्रभुका अद्वितीय शरीर बनाया है। उस शरीरका पहला वज्रर्पभनाराच संहनन था। ॥६७||
है उस प्रभुके शरीरमें मद खेद वगैरः दोष, रागादिक दोष तथा वातादि तीन है दोषोंसे उत्पन्न हुए रोग कोई समय भी जगह नहीं पाते हुए । इस प्रभुकी वाणी जगत्है को प्यारी, शुभ और सबको सत् मार्गकी दिखाने वाली धर्म माताके समान थी। दूसरी ? 2 खोटे मार्गको पहुँचाने वाली ऐसी नहीं थी । प्रभुके दिव्य शरीरको पाकर आगे कहे ? 2 जानेवाले लक्षण ऐसे शोभायमान होते हुए, जैसे धर्मात्माओंको पाकर धर्मादिगुण 2 शोभित होते हैं। वे लक्षण ये है-श्रीक्ष शंख पद्म सांतिया अंकुश तोरण चमर सफेद। छत्र धुजा सिंहासन दो मछलियां दो बड़े समुद्र कछुआ चक्र तालाच विमान नागभवन ! 18 पुरुषस्त्रीका जोड़ा बड़ा भारी सिंह वाण तोमर गंगा इंद्र सुमेरु गोपुर पुर चंद्रमा मूर्य,
घोड़ा बीजना मृदंग सर्प माला वीणा बांसुरी रेशमीवस्त्र दुकान दैदीप्यमान कुंडल र है विचित्र आभूषण फल सहित बगीचा पके हुए अनाजवाला खेत हीरा रत्न वड़ा दीपक ४ पृथ्वी लक्ष्मी सरस्वती सुवर्ण कल्पवेलं चूड़ारत्न महानिधि गाय बैल जामुनका वृक्ष ॥१७॥ १ पक्षिराज सिद्धार्थ वृक्ष महल नक्षत्र तारे ग्रह मातिहार्य । इत्यादि दिव्य एकसौ आठ 2
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