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म.वी. हुई है और अपना समय आनेपर नाश हो जायगी । इसमें कुछ संदेह नहीं है । जो करोड़ों जन्मोंसे भी दुर्लभ मनुष्यायु मौत से क्षणभर में नाश हो जाती है तो अन्यवस्तुओं की स्थिर रहनेकी क्या आशा रखनी चाहिए। क्योंकि सवका नाश करनेवाला पापी यमराज | इस प्राणीको गर्भ से लेकर समयादि कालके हिसाब से अपने पास घसीट लाता है । जो यौवन धर्मसुखादिका कारण होनेसे सज्जनोंको माननीय है वह भी व्याधि (रोग) मौतसे घिरकर क्षणभर में बादलोंके समान नष्ट हो जाता है । क्योंकि कोई जवान पुरुष रोगरूपी आग से जाते हैं और कोई बंदीखाने में रखे गये अनेक तरहके दुःख भोगते हैं । जिस कुटुंके लिये नरकादिका कारण निंदनीक काम किया जाता है वह भी काल से चलायमान हुआ साररहित ही है । इस संसारमें जब चक्रवर्तीके भी राज्य लक्ष्मी सुख आदिक बादलकी छाया समान विनाशीक चंचल हैं तो दूसरी वस्तुकी स्थिरता ही क्या हो सकती है ? कुछ भी नहीं । इस प्रकार जगत् की सब वस्तु क्षणवि| नाशी जानकर हे बुद्धिमानो हमेशा गुणोंका समुद्र अविनाशी ऐसी मोक्षको शीघ्र ही साधी । इति ।
अशरण भावना - इस संसारमें निर्जनवनमें जैसे सिंहकी दाढके बीचमें आये हुए बच्चे को कोई भी शरण ( वचानेवाला ) नहीं है उसी तरह इस प्राणीको भी रोग
पु. भा. अ. ११
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