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इस प्रकार जिस धर्मको नहीं पाकर ये पाणी भटकते हैं उस संसारके नाशक धर्मको हे भवसे डरे. हुए भन्यो तुम बहुत यत्नसे सेवन करो । भो शीघ्र ही सुख चाहनेवाले भव्यो ! रत्नत्रयरूप धर्मसे अनंत सुखवाली और दुःखसे अलग ऐसी मोक्ष मिलती है इसलिये यत्नसे धर्मको पालो। । एकत्वभावना-यह प्राणी इस संसाररूपी वनमें अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मरण करता है, अकेला ही भटकता है और अकेला ही महान् सुख भोगता
है । अकेला ही रोगादिसे घिरा हुआ बहुत वेदना (दुःख ) पाता है उसके एक ही पहिस्सेको भी देखनेवाले कुटुंबी नहीं वांट सकते । यमराज कर घसीटा गया यह प्राणी ही
अकेला ही बहुत जोरसे चिल्लाकर रोता है उसको क्षणभरभी भाई वगैरः नहीं बचा सकते। M . अकेला ही यह जीव अपने कुटुंबके पालनेके लिये निंदनीक हिंसादि पापोंसे ।।
अपनी खोटी गति होनेका कारण पापबंध करता है और उसके फलसे वही पापी नरकादि खोटी गती पाकर अत्यंत दुःख भोगता है उसके साथ दूसरा कोई कुटुंबी मनुष्य नहीं भोगता | अकेला ही यह जीव सम्यग्दर्शन तप ज्ञान चरित्रादि शुभ कामोंसे । जिनेंद्र आदिकी संपदाको देनेवाला महान पुण्यबंध करके और उसके फलसे वह ज्ञानी स्वर्गादि सुगतियोंमें महान विभूतियां पाकर अनुपम सुख भोगता है। उसके समान ही दूसरा कोई महान पुरुप नहीं है।
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