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टता हुआ । उसके भय से वे अन्य राजकुमार दृक्षसे कूदकर घबराये हुए बहुत दूर भाग गये ।
वह महावीरकुमार सैकड़ों जिह्वावाले उस डरावनी सुरतके सर्पपर चढकर शुद्ध हृदयसे शंकारहित हुआ ऐसे क्रीडा करने लगा मानों उस सर्पको तृणसमान समझ | माताकी सेजपर क्रीडा करता हो । उस कुमारके महान धैर्यको देखकर वह देव आश्चर्य | सहित हुआ प्रगट होकर उस प्रभुके उत्तम गुणोंकी स्तुति करता हुआ । हे देव तुम ही जगत् के स्वामी हौ, महान् धीर वीर भी तुम ही हो, तुम सब कर्मरूपी वैरियोंके नाश | करनेवाले और जगतके जीवोंकी रक्षा करनेवाले हो ।
आपकी कीर्ति नामके स्मरण प्राप्त होता है ।
हे देव चांदनीके समान अति निर्मल महापराक्रम से उत्पन्न हुई | किसीसे नहीं रुककर इस लोककी नाड़ी में फैल रही है । हे देव तुमारे | (याद) करनेसे ही पुरुषोंको सब प्रयोजनोंका सिद्ध करनेवाला धैर्य हे नाथ अत्यंत दिव्यमूर्तिवाले सिद्धिवधूके भर्ता महावीर आपको मैं वारंवार नमस्कार करता हूँ । इसप्रकार वह देव स्तुति करके उन जगत्गुरूका महावीर ऐसा सार्थक नाम करता हुआ वारंवार प्रणाम करके स्वर्गको गया । कुमार भी कहीं चंद्रमा के समान निर्मल सबके कानों को सुख देनेवाला अपने यशको गंधर्व देवोंसे गाया हुआ कानोंसे सुनता था