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म. वी. है, रहित, दूधके समान सफेद रुधिरयुक्त, महान् सुगंधित, एक हजार आठ शुभलक्षणोंसे पु. भा.
शोभायमान, पहले वज्रषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थानवाला, उत्तम ६५॥ १ रूपयुक्त, और अतुल बलकर सहित था।
सवको हितकरनेवाले कर्णोको प्रिय उस प्रभुके निर्मल वचन निकलते हुए । इस प्रकार जन्मसे होनेवाले दिव्य दस अतिशयोंकर सहित, शांतता आदि अपरिमित गुण कीर्ति कांति कलाविज्ञानकी चतुराई तथा व्रत शीलादि भूषणों सहित, तपाये सोनेके । समान वर्णवाला, दिव्यदेहका धारक, और वहत्तरि वर्षकी आयुवाला वह प्रभु धर्मकी मूर्तिके समान शोभायमान होता हुआ।
• एक दिन इंद्रकी सभा इस महावीर प्रभुकी महान पराक्रमको वतलानेवाली कथा ६. देव आपसमें करते हुए । देखो वीर जिनेश्वर कुमारअवस्थामें ही धीर, शूरोंमें मुखिया । " अतुल पराक्रमी, दिव्यरूपका धारी, अनेक महान गुणोंसे शोभायमान, और निकट 2 संसारी क्रीडा करता हुआ बहुत अच्छा दीखता है । ऐसे वचन संगम नामका देव । , सुनकर उसकी परीक्षा करनेके लिये स्वर्गसे चलकरं महावनमें आया । वहाँपर बहुत।
राजपुत्रोंके साथ महा तेजस्वी कुमारको क्रीडा करते हुए देखा । उस प्रभुको डरानेके ॥६५॥ लिये वह देव काले सर्पका आकार बनाता हुआ वृक्षकी जड़से लेकर स्कंधतक लिप
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