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इंद्रके हरएक अंगमें जो रमणीक कलायें थीं वे देवियोंके नाचनेसे उन देवियोंमें बंट गई 50 हा इत्यादि विक्रिया ऋद्धिसे देवियोंके साथ अनेक तरहके हाव भावोंसे नृत्यकरनेसे आनंद नाटकको दिखलाता हुआ वह इंद्र माता पिता आदि सब सभासदोंको आनंद उत्पन्न करता हुआ।
उसके बाद वे सब इंद्र जिनेन्द्रकी सेवा भक्तिके लिये देवियोंको तथा जिनेन्द्रकेट ||समान रूप उमर भेष वनानेवाले असुर कुमारोंको वहां रखकर अति पुण्य उपार्जन कर-1 Fall के देवोंके साथ अपने २ स्वर्गस्थानको जाते हुए । इस प्रकार पुण्यके फलसे वह तीर्थ
कर स्वामी इंद्रोंकर पूजित सब संपदाओंकर पूर्ण होता हुआ। ऐसा जानकर हे भन्यो यदि सुख संपदा चाहते हो तो तुम भी सब सुखोंका बीज एक धर्मको ही यत्नसे हमेशा पालन करो।
इस प्रकार श्रीसकलकीर्ति देवविरचित महावीर पुराणमें भगवान महावीरके जन्माभिषेकको कहने वाला नौमा
आकार पूर्ण हुआ ॥ ७ ॥
जन्म