________________
उपशम भक्ति वात्सल्य अनुकंपा आदि गुणोंकर रहित तीर्थकर पदवीकी पहली सीढ़ी है। रूप दर्शनविशुद्धिके ऊपर चढ़ता हुआ।
वह योगी ज्ञान दर्शन चारित्र और व्यवहारविनय तथा ज्ञानादि गुणोंके धारण करनेवालोंकी विनय मनवचन कायकी शुद्धिसे पालता हुआ। अठारह हजार शील , और पांच महाव्रतोंको सावधानीसे अतीचार ( दोष) रहित पालता हुआ । वह संजमी अज्ञानके नाशक अंगपूर्वादिके ज्ञान करानेवाले शास्त्रोंको निरंतर आप पढ़ता हुआ। पापोंकी शांतिके लिये निरालस्य होकर शिष्योंको पढाता हुआ। वह मुनि सव अनर्थोके ।। करनेवाले देह भोग संसारसे परमसंवेगको चितवन करता हुआ । अर्थात् इन तीनोंसे भयभीत होता हुआ। वह नंदनामा योगी मुनियोंको ज्ञानदान, अन्य जीवोंको अभयदान । और सब जीवोंको सुख देनेवाला धर्मोपदेश करता हुआ।
वह रातदिन दुष्टकर्मरूपी वैरियोंको नाश करनेके लिये अपनी शक्ति के अनुकूल वारह प्रकारका पूर्व कहा हुआ तप निर्दोप पालता हुआ। रोगसे पीड़ित इसीलिये
समाधि धारण करनेमें असमर्थ ऐसे साधुओंकी सेवा उपदेशादि द्वारा करता हुआ, जिससे Mallकि उनकी समाधि स्थिर होवे । आचार्य उपाध्याय शिष्य तपस्वी ग्लान गणगुरु कुल