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- इस प्रकार श्रीतार्थकर भगवान्को महान् उत्सवके साथ सुगंधी जलसे भरे हुए महान् कलशोंसे स्नान कराते हुए । प्रभुके अंगके ऊपर पड़ती हुई सुगंधवाली जलधारा. प्रभुके शरीरके स्पर्शमात्रसे अत्यंत पवित्र होती हुई । सव पुण्योंको करनेवाली जगतकी ? इच्छाको पूर्ण करती पुण्यधाराके समान वह जलधारा हम भव्यजीवोंको मोक्षलक्ष्मी दो,
जो जलधारा पुण्यास्रवधाराके समान सब मनवांछित कार्योंको सिद्ध करनेवाली है वह हा धारा हम भव्यजीव्योंको भी सब इच्छित संपदाओंको विस्तारो।
। जो पैनी तलवारकी धाराके समान सत्पुरुषोंके विनोंको नाशकर देती है ऐसी ला हा वह जलधारा हम भव्योंके मोक्षसाधनमें विघ्नोंको नाश करो। जो अमृतकी धाराके समान ।।
पुरुषोंके सब दुखोंको नाश कर देती है वह हम भव्योंके मोक्षमार्गमें मैल करनेवाली वेद-11 नाको नाश करो, जो धारा श्रीमान् वीर प्रभुके दिव्य शरीरको पाकर अति पवित्र ? होगई ऐसी वह जलधारा हमारे मनको दुष्टकर्मरूपी मैल हटाकर पवित्र करै । इस तरह वे ॥ देवोंके स्वामी शांतिके लिये गंधजलसे प्रभुका अभिषेक करके 'भव्योंको शांति होवे ऐसा वहुत जोरसे बोलते हुए । उस सुगंधितजल (गंधोदक ) को वे देव मस्तकमें तथा सब अंगमें अपनी शुद्धिके लिये हर्षित होकर लगाते हुए।
अभिषेकके हो जानेके वाद वे इंद्र मनुष्यदेवोंकर पूजित ऐसे उस महावीर प्रभुको ||
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