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रका नेत्ररूप उस प्रभुके स्वभावसे ही काले नेत्र थे तौभी व्यवहार दिखलानेके लिये नेत्रों में अंजन लगाती हुई ।
तीन जगत्के पतीके छिद्र रहित सुंदर कानोंमें वह इंद्राणी रत्नोंके कुंडल पहनीता हुई । उस प्रभुके कंठमें रत्नोंका हार, वाहोंमें वाजूबंद, हाथोंके पहुंचोंमें कड़े और उंगलियोंमें अंगूठी पहनाती हुई । कमरमें छोटी घंटियोंवाली मणियोंकी करधनी पहनाई, जिसके ||तेजसे सर्व दिशायें प्रकाशमान होगई । उस प्रभूके पैरोंमें मणिमयी गोमुखी कड़े पहनाये । | इसप्रकार असाधारण दिव्य मंडनोंसे (गहनोंसे), स्वभावसे हुई कांतिसे और स्वाभाविक उत्तमगुणोंसे वे प्रभु ऐसे मालूम होने लगे मानों लक्ष्मी के पुंज ही हों, अथवा तेजके खजाने हों, सुंदरता के समूह ही हों और श्रेष्ठगुणोंके समुद्र ही हों ।
भाग्योंके स्थान ही हों अथवा यशोंकी राशि ही हों इस प्रकार उन प्रभूका स्वभावसे सुंदर निर्मल शरीर आभूषणोंसे अत्यंत शोभायमान हो गया । इसतरह आभूषणोंसे सजे हुए तथा इंद्रकी गोद में विराजमान महावीर प्रभुको देखकर इंद्राणी प्रभुकी रूपसंपदा को देखती हुई आप आश्चर्यवाली होगई । इंद्र भी उस समयकी प्रभुके सब अंगकी शोभाको देख दो नेत्रोंसे तृप्त न होकर आश्चर्यसहित हुआ निमेष रहित हजार नेत्र करता हुआ । सब देव और देवियां भी प्रभुकी रूपसंपदाको दिव्य लोचनों से हर्षित | होके देखती हुई ।