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साथ महामूल्य मणि सुवर्णमयी रत्नोंकी वर्षा करता हुआ । उस समय दैदीप्यमान माणिक्य और सुवर्णकी राशियोंसे पूर्ण वह राजमहल रत्नकिरणों की ज्योतिसे सूर्यादि ग्रह
चक्रके समान प्रकाशमान होता हुआ। कोई बुद्धिमान राजाके आंगनको मणि सुवर्ण 3. आदिसे भरा हुआ देख आपसमें ऐसा कहने लगे । अहो देखो यह तीन जगतके |
गुरुकी ही महिमा है जो कि यह यक्षोंका स्वामी इस महाराजका मंदिर रत्नोंसे ! पूर्ण कर रहा है।
यह बात सुनकर दूसरे लोग भी कहने लगे, देखो इसमें कुछ अचंभा नहीं है। लेकिन ये देवेन्द्र भक्तिसे अर्हत होनेवाले पुत्रकी सेवा कर रहे हैं, । यह बात सुनके | र अन्य कोई लोक ऐसा बोले देखो यह सब धर्मका ही उत्तम फल है जो कि होनहार ।
अर्हत पुत्रकी खुशीमें यह रत्नोंकी वर्षा हो रही है । क्योंकि धर्मके प्रसादसे ही तीन लोककर पूज्य तीर्थकर पदकी संपदाको प्राप्त ऐसे पुत्रका जन्म होता है । इत्यादि दुर्लभ ९. वस्तुएं भी धर्मसे सुलभ हो जाती हैं । फिर कोई ऐसा कहने लगे कि यह बात सच कही है कि धर्मके विना पुत्रादि इष्ट वस्तुकी प्राप्ति नहीं हो सकती।
इसलिये सुखके चाहनेवालोंको हमेशा प्रयत्नसे अहिंसालक्षण धर्म सेवन करना। ४. चाहिये, जो कि निर्दोष अणुव्रत और महावतोसे दो प्रकारका है । अयानंतर किसी दिन ।
मरमर