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भाग चारों तरफसे देव देवियोंकर घिरगया तथा राजमहलका आंगन इंद्रादिकोंसे 8 पु. भाः
भरगया। ॥५४॥
उसीसमय इंद्राणी शीघ्र ही उत्तम प्रसूतिगृहमें घुसके दिव्य शरीरवाले कुमारको लिये जिनमाताको देखती हुई । फिर वार २. प्रदक्षिणा कर जगतके गुरुको मस्तक
नवाकर जिनमाताके आगे खड़ी हो उसके गुणोंकी प्रशंसा करती हुई । हे देवी तीन ६ जगतके स्वामीको पैदा करनेसे तुम सब जगतकी माता हौ और महान् देवरूप पुत्रके , करनेसे महादेवी भी तुम ही हौ । और महान्देवरूप पुत्रके उत्पन्न करनेसे तुमने अपना 8 नाम सार्थक करलिया। दूसरी स्त्रियां कोई भी तुमारे समान नहीं हैं। है इसप्रकार इंद्राणी माताकी स्तुति कर और उसको माया निद्रा सहित करके है S मायामयी वालक उसके आगे रख अपने हाथोंसे जिन भगवान्को उठाकर दीप्तिसे हा
॥५४॥ दिशाओंको प्रकाशित करनेवाले उनके शरीरका स्पर्श करती हुई और प्रभुका मुंह
वार २ चूंवती हुई। ऐसी इंद्राणी उस प्रभूके दिव्यरूपसे उठी महान रूपसंपदाको । 5. उन्मेपरहित देखती संती बहुत प्रसन्न हुई। उसके बाद वह इंद्राणी आकाशमें उस ४ वालक सूर्यको केकर जाती हुई ऐसी शोभायमान होनेलगी मानों मूर्यसे पूर्व दिशा ही