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म. वा.
॥४९॥
आठवां अधिकार ॥ ८ ॥
क
पंचकल्याणभाक्तांर दातारं त्रिजगच्छ्रियम् । त्रातारं संसृतेः पुंसां वीरं तच्छक्तये स्तुवे ॥ १ ॥
भावार्थ- गर्भादि पांचों कल्याणों के भोगनेवाले, तीन जगतकी लक्ष्मीको देनेवाले और चार गतिरूप संसारसे रक्षा करनेवाले ऐसे श्रीमहावीर स्वामीको उनके गुणोंकी प्राप्तिके लिये नमस्कार करता हूं ।
अथानंतर कोई देवीं माताके आगे मंगलद्रव्य रखती थीं कोई माताको स्नान कराती हुईं। कितनी ही पान बनाके देती हुई । कोई रसोई करती हुई, कितनी ही | देवियाँ सेज विछाती हुई कोई पैर धोती हुई दिव्य आभूषण पहनाती हुई कोई दिव्य पुष्पों की माला बनाके देतीं हुई कोई रेशमी कपड़े कोई रत्नों के गहने देतीं हुई । कितनी ही देवियां माताकी अंग रक्षाके लिए नंगी तलवारोंसे पहरा देतीं हुई और कितनी ही माताकी इच्छानुसार भोगादिकी सामग्री देती हुई कोई फूलोंकी धूलिसे भरे हुए राजमहलके आंगन में बुहारी लगातीं हुई और कोई चंदनके जलसे छिड़काव करती हुई ।
पु. भा
अ. ८
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