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म यहाँपर मनवांछित वस्तुकी प्राप्ति है और जो तीन लोकमें भी दुर्लभ वाणीके अगोचर / . ऐसा इंद्रियमुख पुण्यात्माओंको यहां सुलभ है । यहां कामधेनु गाएं, सब कल्पवृक्ष और
चिंतामणि रत्न स्वभावसे ही प्राप्त होते हैं । उनके मिलनेमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। । यहाँपर कोई ऋतु दुःखका कारण नहीं है और काल भी जीवनपर्यंत सुख देता हुआ) शांतभावको प्राप्त है।
यहां कभी दिन रातका भेद नहीं होता, दिनकी शोभाको वढानेवाला केवल रत्नोंका प्रकाश हमेशा बना रहता है। यहांपर कोई जीव दीन दुःखी रोगी अभागा कांतिIM रहित पापी निर्गुणी और मूर्ख स्वममें भी नहीं देखा जाता है । यहाँपर हमेशा जिना
लयों में जिनेश्वरकी महापूजा होती रहती है और नाचना गाना आदिसे प्रतिदिन महान्
उत्सव हुआ करते हैं। संख्यातयोजनों के विस्तारवाले असंख्याते देवविमान यहाँपर हैं। K. उनमेसे एकसौ तेवीस प्रकीर्णक व श्रेणीबद्ध और इंद्रक विमान बहुतसे हैं । दे दश K: हजार सामानिक देव हैं, जो आपके समान महान ऋद्धिवाले हैं परंतु आज्ञा नहीं चला R: सकते । ये तेतीस समूहदेव प्रेमकर भरे हुए तुमारे पुत्रके समान हैं।
ये आत्मरक्षक देव ४००००चालीस हजार हैं वे भी अंग रक्षा करनेवाले सिपाहियोंके समान केवल विभूति दिखाने के लिये ही हैं । ये अंदरकी सभाके देव सवासौ हैं और