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. म. वी. देश है, कौन ये प्रीतिमान् चतुर विनयवाले देव हैं। कौन ये सुंदर देवांगना हैं जो कि दिव्य
, रूपकी खानि हैं और ये रत्नमयी, आकाशमें अधर रहनेवाले महल किनके हैं। ॥३९॥ ये सात तरहकी देवरक्षित मनोज्ञ सेना किसकी है और ये बहुत ऊंचा सभामंडप
किसका है । ये दिव्य रत्नमयी ऊंचा सिंहासन किसका है और ये उपमारहित बहुतसी ४ संपदायें किसकी हैं । किसकारणसे अतिसुंदर विनयवान ये सब लोग मुझे देखकर 8 आनंद मानरहे हैं। अथवा सव संपदाओंको ठिकाने इस जगहमें मुझे कौन पूर्वकृत शुभ है। हे कर्म ले आया है । इत्यादि चिंता वह देवोंका इन्द्र अपने मनमें कर रहा था और संदे-है 2 हका नाशक निश्चय भी नहीं हुआ था इतनेमें ही उसके चतुर मंत्री अवधिज्ञानरूपी 2 नेत्रसे उसके अभिप्रायको जानकर उसके समीप आये और उसके चरण कमलोंको ।
नमस्कार कर दोनों हाथ जोड़के उसके संशय दूर करनेके लिये प्रियवचन खुशीके ! 9 साथ कहते हुए।
हे देव ! हे स्वामी नम्रीभूत हम लोगोंपर प्रसन्न दृष्टि करके अपने संदेह निवारणेवाले वचन सुनो । हे नाथ आज हम धन्य हैं हमारा जीवन आज सफल होगया, क्योंकि अब आपने अपने जन्मसे यह स्थान पवित्र किया । सव संपदाओंका समुद्र यह अच्युत नामका स्वर्ग सव स्वर्गोंके ऊपर मस्तकमें चूडामणि रत्नके समान शोभित होरहा है।
॥३९॥