________________
ब्लमन्लन्ट
ऋद्धिवाला सिंहकेतु नामका देव हुआ । दोघडीके वीचमें संपूर्ण जवान अवस्थाको प्राप्त पु. भाः होता हुआ । वहां पर अवधिज्ञानसे पूर्व जन्ममें पालन किये व्रतोंका फल जानकर धर्मके | माहात्मकी प्रशंसा करके धर्ममें बुद्धिको दृढ करता हुआ। ___उसके वाद वह देव अकृत्रिम चैत्यालयमें जाकर जलादि अष्ट द्रव्यसे अर्हतकी माणमयी प्रतिमाओंकी दिव्य महामह पूजा करता हुआ । फिर मनुष्यलोकमें नंदीश्वरादि । दीपोंमें सब मनोरथोंकी सिद्धिके लिये जिनेन्द्र प्रतिमाओंकी पूजा करके जिनेन्द्र व गणधरादि मुनींद्रोंको हर्ष सहित प्रणाम करके और उनसे तत्वोंका स्वरूप सुनकर धर्मका उपार्जनकर अपने स्थानको आता हुआ। वहां अपने किये हुए पुण्यके उदयसे । 5 देवियोंको तथा विमानादि संपदाओंको पाता हुआ।
इस प्रकार वह देव अनेक तरह पुण्य उपार्जन करता ( कमाता) हुआ सुंदर , चेष्टा वाला सात हाथ प्रमाण दिव्य शरीरको धारण करता हुआ और जिसकी आखोंके
पलक हमेशा खुले रहते थे। पहले नरककी पृथिवीतकका अवधिज्ञान व विक्रियाऋद्धिका वल ६ था और दो हजार वर्षे वीत जाने पर हृदयसे झड़ने वाले अमृतका आहार था । तीस
दिनबाद थोड़ी श्वास लेता था और देवांगनाओंके रूप विलास नाचना वगैरेः देखताथा- ॥२२॥ १ महल वगीचे पर्वतादिकोंमें अपनी देवियोंके साथ क्रीडा करता था और अपनी इच्छाके