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| तका आहार करता था और नौ महीनेके वाद थोड़ा उच्छास लेता था। अपने अवधि ज्ञानसे चौथे नरकतक मूर्त वस्तुओंको जानता हुआ और वहीं तक उसकी विक्रिया है।
करनेकी शक्ति थी । वह देव अपनी देवियों के साथ स्वच्छंद वन पर्वतादिकोमें भ्रमता ह हुआ क्रीडा करता हुआ। कहीं वीणादि वाजोंसे, कहीं मनोहर गीतोंसे, कहीं देवांगना६ ओके शृंगार दर्शनसे, कभी धर्मचर्चासे, कभी केवलीकी पूजासे, कभी तीर्थकरोंके पंचहै। कल्याणादि उत्सवोंसे इत्यादि अन्य कार्योंसे भी वह देव कालको बिताता हुआ देवोंकर
सेवित सुखसमुद्रमें मग्न होता हुआ । ___ अथानंतर जवूद्वीपके भरत क्षेत्रमें धर्मसुखकी खानि छत्राकार नामका रमणीक नगर है । उसका स्वामी नंदिवर्धन राजा था और उसकी पुण्यवती वीरवती नामकी रानी थी। उन दोनोंके वह देव स्वर्गसे चयकर नंद नामका पुत्र हुआ। वह अपने रूपादि गुणोंसे || जगत्को आनंद करनेवाला हुआ। उसका जन्म उत्सव बहुत आनंदके साथ हुआ । वह पुत्र दूध अन्नादिकसे गुणों के साथ बढ़ता हुआ । क्रमसे अपने गुरुसे शास्त्रविद्या और | शस्त्रविद्या सीखता हुआ कला विवेक रूपादि गुणोंसे देवके समान मालूम होने लगा। तदनंतर जवान होनेपर पितासे राज्यपद पाकर उत्तम भोगोंको भोगता हुआ निःशंकादिम गुणोंसहित निर्मलसम्यक्त्वको धारण करता हुआ श्रावकोंके वारहव्रत अच्छी तरह पालने ।
कन्छन्