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वैरियोंको रोकने के लिये शुभ प्रशंसनीय धर्म ध्यानका चितवन करता हुआ । वह मुनि सिंहके समान अकेला धर्मध्यान शुक्लध्यानकी सिद्धिके लिये पर्वत गुफा वन श्मशान आदिमें निवास करता हुआ । वन ग्राम गामड़ेमें विहार करता हुआ वह दयामयी मुनि जहां सूर्य छिप जावे उसी उसी जगह पर रातभर ध्यानादि करता था । सर्प आदि से भरी हुई, बड़ी भारी हवासे अति भयंकर ऐसी वर्षाऋतु वह योगी वृक्षके नीचे योग लगाकर बैठता था ।
सरदी के समय में चौरायेपर अथवा वर्फसे घिरे हुए नदीके किनारे ध्यानकी गर्मी से शीतकी बाधा रोकता हुआ वहां पर रहता था। गर्मी के दिनों में सूर्यकी किरणोंसे गर्म ऐसी पहाड़की शिलापर ज्ञानरूपी जलसे गर्मीकी वाधा दूरकरता हुआ आसन लगाता था । इस प्रकार अन्य भी कठिन कायक्लेशरूप वाह्यतप करता हुआ ध्यानकी सिद्धिके। लिये अंतरंग तपरूप मूल गुण उत्तर गुणोंको पालन करता हुआ मरणके समय आहार शरीर से ममता छोड़ अनशन तप ग्रहण करता हुआ । पुनः दर्शन ज्ञान चारित्र तपरूप चारों आराधनाओंको सेवन कर समाधि से प्राणोंको छोड़ उसके फलसे महाशुक्र नामके दशवें स्वर्गमें महान ऋद्धिका धारी देव हुआ ।
भी अंतर्मुहूर्त ( ४८ मिनट के अंदर ) वस्त्र भूपण सहित धातुमलादि रहित