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म. वी. हुआ पराधीन होके अत्यंत पापबुद्धिवाला तू इसी वनमें सिंह हुआ था । भूख पियास ?
। गर्मी सर्दी :वगैरःसे सताया. हुआ तू फिर भी हिंसादि खोटे काम करने लगा । उसके , ॥२०॥ , फलसे फिर भी सब दुःखोंकी खानि पहली नरककी पृथिवीमें गया । वहांसे चयकर ।
। यहींपर तू फिर भी सिंह हुआ है सो अव भी क्रूरता ( दुष्टता ) स्वभावको धारण कर । , रक्खा है क्या नरकके महान दुःखोंको तु विलकुल भूलगया है।
अब हे मृगपति दुर्गतिके नाशके लिये तू शीघही क्रूरपना छोड़ शुभरूप अनशन-18 व्रतको धारण कर, जिससे तेरा कल्याण हो। ऐसे उन मुनिके वचन सुनकर उस सिंहको जातिस्मरण होगया, तब बड़े भारी संसारके दुःखोंको विचारनेसे उसका सव
शरीर कांपने लगा और नेत्रोंसे आंसू बहने लगे। फिर वह शांतचित्त होकर पछताने । हे लगा। उसके बाद वे मुनि अपनी तरफ निगाह रखनेवाले तथा शांतचित्तवाले उस ? ४ सिंहके पास आकर दया करके ऐसा कहते हुए । कि पहले जन्ममें तू पुरुरवा भील • था वहां कुछ धर्मको पालन करनेसे सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वहांसे चयकर पूर्वपुण्यके । , उदयसे महाराज भरतचक्रवर्तीका मरीचि नामा तू पुत्र हुआ। फिर श्रीऋषभदेवके साथ ।।
दीक्षा धारण की लेकिन परीपहोंके सहनेके डरसे श्रेष्ठ मार्गको छोड़ पापके उदयसे । ॥२०॥ ६ मिथ्याती पाखंडियोंका तूने भेष रक्खा ।