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जन्म
II श्रेष्ठमार्गको दोष लगाकर मिथ्यामार्गको बढाया और अपने वाबा श्रीऋषभदेवके ।
सत्य वचनोंका अनादर किया। उस मिथ्यात्वसे उत्पन्न हुए पापोंके उदयसे जन्ममरणसे पीड़ित हुआ इस संसारवनमें भटकते २ अनेक दुःख भोगे । इष्ट वस्तुके या वियोगसे अप्रिय वस्तुके संयोगसे और रोगादिकी वेदनासे तूने बहुत दुःख पाये। हाफिर उसी मिथ्यात्वरूपी महान्पापसे असंख्यात (बहुतसी) त्रस स्थावर योनि | हायोंमें भटकता रहा।
किसी कारणसे तू फिर किसी राजाके यहां विश्वनंदी पुत्र हुआ। फिर संयमको निधारण किया परंतु निदान बांधनेसे त्रिपृष्ठ नामका नारायण हुआ।
अव तू इसी भरत क्षेत्रमें इस जन्मसे लेकर दशवे जन्ममें निश्चयसे जगत्का साहित करनेवाला चौवीसवां तीर्थकर होगा। यह बात विलकुल सत्य है । क्योंकिजंवृद्वीपके पूर्व विदेहमें श्रीधरनामक तीर्थकरको किसीने सभामें पूछा था कि हे भगवन् । जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें जो अंतका (चौवीसवां) तीर्थकर होगा उसका जीव आजकाल किस जगह है । इसप्रकार उस भव्यके प्रश्नका उत्तर श्रीधरतीर्थकर अपने गणधरोंको
जैसा कहते हुए वैसा ही मैंने तेरे हितके लिये तुझे सब हाल सुना दिया है। Mail इसलिये अब तू बहुत समयसे लगे हुए संसारका कारण ऐसे मिथ्यात्वको हालाहल
सलन्द
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