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म. वी. जोरसे असिपत्र वृक्षोंसे गिरे हुए तलवारके समान पैंने पत्तों से उसका शरीर छिन्नभिन्न पु. भा.
है हुआ डरावना होगया। फिर वह खंडित शरीरवाला बहुत दुःखी हुआ वहांसे चलकर ॥१८ दुखोंकी शांतिके लिये पहाड़की गुफाओंमें घुसता हुआ। वहां भी क्रूर नारकियोंने अ. १ विक्रियाके जोरसे सिंहव्याघ्र, सर्पादि स्वरूप बनकर उसको मारकर खानेका आरंभ किया।
इत्यादि अनेक प्रकारके कविवार्णाके अगोचर उपमारहित दुःखोंको पापके उदयसे है। १ वह दिनरात भोगता हुआ। वहांपर समुद्रका सब जल पीनेसे भी नहीं शांत होनेवाली है। । प्याससे प्यासा हुआ था तो भी कभी बूंदके बराबर भी जल पीनेको नहीं मिला । सब
संसारभरके अन्नको खाकर भी तृप्त नहीं होनेवाली ऐसी भूखसे पीडित होनेपर तिलके । समान भी कभी आहार खानेको उसे. नहीं मिला | उस नरकमें इतनी ठंड है कि एक : लाख योजनके प्रमाण लोहेका गोला डाल दिया जावे तो शीघ्रही शीतवर्फसे सैकड़ों ४ टुकड़े होसकते हैं । इत्यादि अन्य भी दुःखोंको वह पापी दिनरात भोगता हुआ । जो ४ दुःख कायवचनमनसे उत्पन्न हुआ, आपसमें दियागया और उस क्षेत्रसे उत्पन्न हुआ १ पांच तरहका है । उस नारकीने कृष्ण लेश्यापरिणामसे दुःख देनेवाली तेतीस सागरकी आयु पायी।
॥१८॥ : अथानंतर उस त्रिपृष्ठ नारायणके वियोगसे अतिपुण्यवान् वलभद्र शीघ्र ही संसार