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उत्पन्न वाहुबलिके बंशमें उत्पन्न हुए ऐसे पोदनपुरके स्वामी महाराज प्रजापतिको स्नेह||पूर्वक मस्तक नवाकर कुशल पूछनेके वादमें सविनय प्रार्थना करता है कि हे प्रजानाथ|| निर्मल वंशवाले हमारा तुमारा संबंध बहुत पीढियोंसे चला आरहा है कुछ विवाहका ही संबंध नहीं है, इसलिये पूज्य मेरे भानजे त्रिपृष्ठ नारायणके साथ मेरी पुत्री स्वयंप्रभा । दूसरी लक्ष्मीकी तरह अत्यंत प्रेमको विस्तारित करे अर्थात् मेरी पुत्रीका आपके पुत्रके साथ विवाह हो जाये तो बहुत अच्छा होवे।
प्रजापति राजा ऐसे प्रेमी संबंधियोंके वचन सुनकर हर्षपूर्वक उस मंत्री दूतको कहते हुए कि जो उनकी इच्छा है वह मुझे भी स्वीकार है। इस तरह वह मंत्री-१ दूत राजासे आदर व दानादि पाकर वहांसे लौट शीवही अपने स्वामीके पास आकर कार्यसिद्धिको निवेदन करता हुआ । उसके वाद अर्ककीर्ति पुत्र सहित वह ज्वलन-IISI
जटी राजा शीघ्र ही त्रिपृष्ट कुमारको बुलाकर हर्ष पूर्वक महान विभूतिके साथ विवाह-16 हा विधिके अनुसार उस कुमारको अपनी स्वयंप्रभा कन्या विवाहता हुआ। वह कन्या भी सामानों दूसरी लक्ष्मी ही थी। देखो पुण्यके उदयसे किस चीजका मिलना कठिन है ? सब मिल सकती है।
फिर वह विद्याधरोंका स्वामी अपने जमाईको सिंहवाहिनी और गरुडवाहिनी ये
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