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(४) ये पदार्थ या तो सभी प्रकृत होते हैं या समी अप्रकृत होते हैं। इस तरह तुल्ययोगिता के दो भेद हो जाते हैं, (१) प्रकृतपदार्थगत, (२) अप्रकृतपदार्थगत ।
(५) अप्रकृतपदार्थगत तुल्ययोगिता में सभी पदार्थ किसी प्रकृत पदार्थ के उपमान होते हैं।
तुरुपयोगिता तथा दीपक-दीपक तथा तुल्ययोगिता दोनों गम्यौपम्यमूलक अलंकार है। दोनों में पदार्थों का एकधर्माभिसंबंध पाया जाता है तथा धर्म का उल्लेख केवल एक ही बार किया जाता है। दोनों एकवाक्यगत अलंकार हैं। इन दोनों अलंकारों में भेद केवल इतना है कि तुल्ययोगिता में समस्त पदार्थ या तो प्रकृत होंगे या अप्रकृत, जब कि दीपक में कुछ पदार्थ प्रकृत होते हैं, कुछ अप्रकृत।
प्रथम तुल्ययोगिता तथा सहोकि-प्रथम (प्रकृतपदार्थगत ) तुल्ययोगिता तथा सहोक्ति दोनों में वर्णित पदार्थ प्रकृत होते हैं । इस दृष्टि से सहोक्ति अलंकार तुल्ययोगिता के प्रथम भेद से घनिष्ठतया संबद्ध है। इतना होने पर भी इनमें यह वैषम्य है कि सहोक्ति में 'सह' पद के प्रयोग के कारण इन पदार्थों में एक प्रधान तथा अन्य गौण हो जाता है, अतः एकधर्माभिसंबंध ठीक उसी मात्रा में नहीं रह पाता, जब कि तुल्ययोगिता में धर्म का दोनों धर्मी (पदार्थों ) के साथ साक्षात् अन्वय होता है।
(८) दीपक (१०) दीपक भी गम्यौपम्यमूलक अलंकार है।
(२) दीपक के धर्मदीपक ( या दीपक), कारकदीपक तथा मालादीपक ये तीन भेद किये जाते हैं, इनमें केवल प्रथम ही औपम्यमूलक अलंकार माना जा सकता है।
(३) इसमें एक वाक्य में अनेक पदार्थों का एकधर्माभिसंबंध पाया जाता है । ये पदार्थ प्रकृत तथा अप्रकृत दोनों तरह के होते हैं।
(४) कारकदीपक में एक ही कारक का अनेक क्रियाओं के साथ अन्वय पाया जाता है। इसमें ये क्रियाएं प्रकृत, अप्रकृत या दोनों तरह की हो सकती है। इसमें 'औपम्य का होना आवश्यक नहीं, साथ ही किसी भी समान धर्म का संकेत नहीं किया जाता।
(५) मालादीपक में क्रमिक पदार्थ एक दूसरे के उपस्कारक बनते जाते हैं। इनका धर्म एक ही होता है तथा उसका उल्लेख केवल एक ही बार किया जाता है। इनमें परस्पर कोई औपम्य नहीं होता । चमत्कार केवल इस अंश में है कि वही धर्म अनेक पदार्थों के साथ अन्वित होता है। दीपक तथा तुल्ययोगिता-३० तुल्ययोगिता ।
(९) प्रतिवस्तूपमा (१) यह गम्यौपम्यमूलक अलंकार है। - (२) इसमें दो स्वतन्त्र वाक्यों का प्रयोग होता है, जिसमें एक उपमेयवाक्य होता है, दूसरा उपमानवाक्य। (३) प्रत्येक वाक्य में साधारण धर्म का निर्देश होता है।
.. (४) यह साधारण धर्म एक ही हो, किंतु विभिन्न वाक्य में भिन्न-भिन्न शब्दों में निर्दिष्ट किया गया हो, अर्थात् दोनों वाक्यों के साधारण धर्मों में परस्पर वस्तुप्रतिवस्तुभाव होना चाहिए।
(५) गम्यौपम्यमूलक अलंकार होने के कारण प्रकृत तथा अप्रकृत का सादृश्य अमिडित नहीं किया जाना चाहिए, उसकी केवल व्यवना हो। ,